जायसी ग्रंथावली वाक्य
उच्चारण: [ jaayesi garenthaaveli ]
उदाहरण वाक्य
- (जायसी ग्रंथावली, भूमिका, पृ 0 146).
- आलोचना की दृष्टि से जायसी ग्रंथावली की भूमिका और भ्रमरगीत सार की भूमिका महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
- आलोचना की दृष्टि से जायसी ग्रंथावली की भूमिका और भ्रमर गीत सार की भूमिका महत्वपूर्ण ग्रन्थ है ।
- आलोचना की दृष्टि से जायसी ग्रंथावली की भूमिका और भ्रमर गीत सार की भूमिका महत्वपूर्ण ग्रन्थ है ।
- संपादित ग्रंथों में हिंदी शब्दसागर, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भ्रमरगीत सार [4], सूर, तुलसी जायसी ग्रंथावली उल्लेखनीय है।
- आलोचना साहित्य: तुलसी दास, जायसी ग्रंथावली की भूमिका, सूरदास, चिंतामणि (तीन भाग), हिन्दी साहित्य का इतिहास और रसमीमांसा ।
- जायसी ग्रंथावली में सूफियों की प्रेमपगी मसनवी शैली की कोमलता को उभारने के लिए शुक्ल जी ने लिखा कि कबीर आदि निर्गुण संतों ने जनता को जो कड़ी फटकार लगाई थी, उस पर सूफ़ियों की प्रेमपगी वाणी ने मरहम का काम किया।
- जायसी ग्रंथावली में सूफियों की प्रेमपगी मसनवी शैली की कोमलता को उभारने के लिए शुक्ल जी ने लिखा कि कबीर आदि निर्गुण संतों ने जनता को जो कड़ी फटकार लगाई थी, उस पर सूफ़ियों की प्रेमपगी वाणी ने मरहम का काम किया।
- इस इतिहास के लेखक ने तुलसी, सूर, और जायसी पर विस्तृत समीक्षाएँ लिखीं जिनमें से प्रथम ' गोस्वामी तुलसीदास ' के नाम से पुस्तकाकार छपी है ; शेष दो क्रमश: ' भ्रमरगीतसार ' और ' जायसी ग्रंथावली ' में सम्मिलित हैं।
- जायसी ग्रंथावली में आचार्य शुक्ल ने स्पष्ट लिखा है-“ निर्गुण शाखा के संत कबीर, दादू आदि संतों की परम्परा में ज्ञान का जो थोड़ा बहुत अनुभव है, वह भारतीय वेदान्त का है, पर प्रेमतत्व बिल्कुल सूफियों का है. ” (पृ 0 162). डॉ. रामकुमार वर्मा आचार्य शुक्ल की इसी अवधारण को इन शब्दों में व्यक्त करते हैं-“ उन्होंने (कबीर ने) अद्वैतवाद से माया और चिंतन तथा सूफी मत से प्रेम लेकर अपने रहस्यवाद की सृष्टि की. ”
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